* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 124
"कुम्भलगढ़ का युद्ध"
1578 ई.
"महाराणा प्रताप द्वारा दुर्ग छोड़ना"
शाहबाज खां ने कुम्भलगढ़ के आसपास कड़ी सुरक्षा कर रखी थी, जिससे महाराणा प्रताप का बचकर निकलना लगभग असम्भव था
महाराणा प्रताप के पास मुट्ठी भर सैनिक थे व पानी की समस्या के कारण सामन्तों ने महाराणा से दुर्ग छोड़ने की विनती की
महाराणा प्रताप ने दुर्ग अपने छोटे मामा भाण सोनगरा चौहान को सौंपा
अब महाराणा के सामने चुनौती थी दुर्ग से बाहर निकलने की
अबुल फजल के अनुसार महाराणा प्रताप ने रात के वक्त साधु के भेष में दुर्ग छोड़ा
पर असल में महाराणा को लड़ते-लड़ते दुर्ग से बाहर जाना पड़ा था
महाराणा प्रताप अपने साथ कुछ प्रजा व कुछ सामन्तों को भी ले गए, ताकि नरसंहार से प्रजा बच सके
हालांकि अब भी बहुत से लोग किले में रहते थे
दुर्ग छोड़ते समय मुगलों से हुई लड़ाई में महाराणा प्रताप के साथी घाणेराव के ठाकुर गोपालदास राठौड़ को 21 घाव लगे, फिर भी जीवित रहे
महाराणा प्रताप ने दुर्ग जरुर छोड़ा लेकिन मन ही मन इरादा किया कि ज्यादा समय तक दुर्ग मुगलों के हाथ में नहीं रहने देंगे | महाराणा प्रताप रामपुरा होते हुए बांसवाड़ा पहुंचे |
* अबुल फजल लिखता है "कुम्भलमेर किले पर चढाई बड़ी मुश्किल थी | ये किला आसमान की बुलन्दी पर बना है, इसे नीचे से ऊपर देखने पर सर से पगड़ी गिर जाती है | राणा कीका ने इसे अपने रहने की जगह बना रखी थी | बादशाही फौज पथरीली पगडंडियों और घाटियों से निकल गई | किला फतह करने के इरादे से शाहबाज खां वहां पहुंचा | खुदा के रहमोकरम से शाहबाज खां ने केलवाड़ा की घाटियों पर कब्जा कर लिया | शाही फौज के बहादुर पहाड़ों पर चढ़ गए | एेसी हिम्मत देखकर किले वालों के हौंसले पस्त हो गए | किले में एक बड़ी तोप अचानक फट गई, जिससे राजपूतों को जान-माल का नुकसान हुआ | तोप फटने के बाद उस कलहकारी राणा के हौंसले भी पस्त हो गए और वो रात के वक्त साधु के भेष में शाही फौज को चकमा देकर भाग निकला | बादशाही फौज ने किले पर कब्जा किया | कई खास राजपूत किले के दरवाजों और मन्दिरों के पास डटे रहे और बड़ी बहादुरी से लड़े | आखिरकार सब राजपूतों का नाश हुआ | वह शरारती राणा बांसवाड़ा की तरफ चला गया"
3 अप्रैल, 1578 ई.
* शाहबाज खान 6 महीने तक कुम्भलगढ़ दुर्ग जीतने के प्रयास करता रहा
आखिरकार बहादुर राजपूतों ने किले के दरवाजे खोल दिये
शाहबाज खान ने भी हमला बोला
* कुम्भलगढ़ दुर्ग में तैनात सभी मेवाड़ी योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए, जिनमें से कुछ के नाम इस तरह हैं -
> भाण सोनगरा चौहान :- ये महाराणा प्रताप के छोटे मामा थे | भाण सोनगरा के पुत्र जसवन्त सोनगरा चौहान ने आगे चलकर छापामार युद्धों में महाराणा प्रताप का साथ दिया |
> सीधल सूजा सीहावत
> सीधल कूंपा भाडावत
> महता नरबद :- ये दुर्ग के किलेदार थे
> मांगलिया जैता :- ये वीर जयमल राठौड़ के भतीजे थे
> कुम्भलगढ़ के इस युद्ध में कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार कोई प्रसिद्ध चारण भी वीरगति को प्राप्त हुए थे, हालांकि जेम्स टॉड ने उनका नाम नहीं लिखा है
* अगले भाग में शाहबाज खां द्वारा किए गए कुम्भलगढ़ में कत्लेआम व महाराणा प्रताप द्वारा इस पराजय के प्रतिशोध के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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