Saturday 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 58



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 122

"कुम्भलगढ़ का युद्ध"

सितम्बर-दिसम्बर, 1577 ई.

"शाहबाज खां की केलवाड़ा विजय"


अकबर के सेनापति शाहबाज खां ने कुम्भलगढ़ से कुछ दूर स्थित केलवाड़ा दुर्ग पर अधिकार किया

"मानसिंह व भगवानदास का अपमान"

* शाहबाज खान ने मानसिंह व भगवानदास को आगरा जाने के लिए कहा, क्योंकि वो राजपूतों का साथ नहीं चाहता था | उसे शक था कि राजपूत होने के कारण कहीं ये महाराणा प्रताप से न मिल जाए |

> अबुल फजल लिखता है "शाहबाज खां ने कुंवर मानसिंह और राजा भगवानदास को इस खातिर रवाना किया, क्योंकि ये राणा के बाप-दादों के मातहत रहे थे | इसलिए इनकी वजह से कहीं उस गर्दीले कलहकारी राणा से बदला लेने में देर न हो जाए"
राजा मानसिंह

> जयपुर की ख्यातें कुछ और लिखती हैं | उनके अनुसार मानसिंह व भगवानदास खुद अपनी इच्छा से आगरा चले गए, क्योंकि महाराणा प्रताप जैसे वीर के विरुद्ध और लड़ना उन्हें सही नहीं लगा |

ये दोनों जब बादशाह अकबर के पास पहुंचे, तो खास बात ये रही कि अकबर ने भी शाहबाज खान के इस फैसले का विरोध नहीं किया |

> ये दोनों जब अकबर के खेमे में पहुंचे, तब उस खेमे में एक हिन्दू लेखक भी था, जो कुछ और बात लिखता है कि -

"पातिसाहजी रामनगर ऊतरि अर डेरा किया | वासै महला रे डेरे राजा भगवानदास आई मिलियो | ओथि पातिसाहजी भगवानदास अर मानसिंह ऊपरि खिजिया | कहियो थे कुम्भळमेर फिटो करि क्यू आया | सु कुम्भळमेर इया माहे हेल हुई | उठा वरमदुवार मागि नीसरिया हुता | मरि छडि, तूती घणो, बेखरच हुई, तूति मरि, भूखा मरि अर नीसरिया हुता | तियै वासतै पातिसाहजी खिजिया"

अर्थात्

"जब अकबर ने रामनगर पर मुकाम किया, तो वहां भगवानदास और मानसिंह पहुंचे | कुम्भलगढ़ के युद्ध में महाराणा प्रताप से पराजित होकर उन्हें घेरा बीच में ही छोड़कर आना पड़ा | इस वजह से अकबर बड़ा क्रोधित हुआ | अकबर ने कहा कि कुम्भलगढ़ फतह करने के लिए हम पहले ही बहुत धन लगा चुके हैं, बहुत फौज खर्च भी हो रहा है और तुम लोग हारकर आ गए"
राजा भगवानदास

* ऊपर बताए तीन कारणों में से चाहे जो भी सही हो, पर मानसिंह और भगवानदास इसके बाद कभी भी महाराणा प्रताप के विरुद्ध लड़ने नहीं आए या सम्भवत: नहीं भेजे गए

इस तरह यहाँ महाराणा प्रताप और मानसिंह के बीच संघर्ष समाप्त होता है | मानसिंह जिस संघर्ष में विजयी होने और बादशाह की नज़रों में और ऊपर चढ़ने के मकसद से कूदा था, उस संघर्ष से उसे इस तरह अपमानित होकर बाहर निकलना पड़ा |

"प्रजा की सुरक्षा"

कुम्भलगढ़ के इलाके में रहने वाली प्रजा को महाराणा प्रताप ने भामाशाह के जरिए कहीं दूसरी जगह भिजवा दी

हालांकि अब भी बहुत से लोग इस इलाके में रह रहे थे

"शाहबाज खां का कुम्भलगढ़ पहुंचना"

कुम्भलगढ़ का मार्ग बड़ा कठिन था | शाहबाज खान को रास्ता नहीं मिला, पर फूल बेचने वाली एक विश्वासघाती महिला ने उसे कुम्भलगढ़ का मार्ग बता दिया |

इस विश्वासघात का पता चलने पर एक भील ने उस महिला को मौत के घाट उतार दिया

शाहबाज खां हजारों मुगलों समेत कुम्भलगढ़ दुर्ग के सामने पहुंचा

* कुम्भलगढ़ का युद्ध... अगले भाग में जारी...

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

No comments:

Post a Comment