महाराणा प्रताप प्रिय हाथी रामप्रसाद के साथ |
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 104
जून-जुलाई, 1576 ई.
"महाराणा प्रताप के प्रिय हाथी रामप्रसाद का बलिदान"
> आमेर के कुंवर मानसिंह कछवाहा को हल्दीघाटी की लूट में रामप्रसाद हाथी मिला था, जिसे उसने बंदायूनी के जरिए अकबर तक पहुंचाया
> अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है
"आसफ खां ने लूट में मिले रामप्रसाद हाथी को शहंशाह को तोहफे में भेजने के खातिर उसे मुझे ले जाने को कहा | मानसिंह ने हँसते हुए मुझसे कहा 'अभी तुम्हारा काम खत्म नहीं हुआ है, तुम्हें तो हर लड़ाई में आगे रहना चाहिए' | मैंने कहा 'मेरा यहां का काम तो खत्म हो चुका है, अब मुझे शहंशाह के पास जाना चाहिए' | मानसिंह खुश हुआ और मुस्कुराया | फिर उसने मुझे 300 सवार देकर शहंशाह के पास जाने को कहा | मानसिंह खुद भी शिकार खेलने के मकसद से 20 कोस पर मोही गाँव तक मेरे साथ रहा | मानसिंह ने जगह-जगह शाही थाने बिठा दिए | मानसिंह ने एक सिफारिशी खत देकर मुझको विदा किया और फिर वह लौटकर गोगुन्दा चला गया | मैं रामप्रसाद हाथी को लेकर बागोर और मांडलगढ़ होता हुआ मानसिंह के इलाके आमेर में गया | जहां-जहां से हम निकले, लड़ाई की खबर फैलती गई | रास्ते में लोग मानसिंह की फतह और राणा की हार की खबर सुनकर हम पर यकिन नहीं करते | आमेर में हम लोग 3-4 दिन रहे | मैं शहंशाह के सामने हाजिर हुआ और अमीरों के खत समेत रामप्रसाद हाथी बादशाह को नज़र किया | शहंशाह ने पूछा 'इस हाथी का नाम क्या है ?' | मैंने कहा 'रामप्रसाद' | शहंशाह ने कहा 'इस पर पीर की मेहरबानी हुई है, इसका नाम पीरप्रसाद रखा जाए' | शहंशाह ने कहा 'अमीरों ने तुम्हारी बड़ी तारीफ की, सच-सच बताओ क्या बहादुरी का काम किया तुमने' | मैंने कहा 'शहंशाह के सामने तो ये नौकर सच कहते हुए भी कांपता है, तो सच के अलावा तो कुछ कह ही नहीं सकता है' | शहंशाह ने मुझसे पूछा कि 'क्या तुम्हारे हाथ में भी हथियार थे' | मैंने कहा 'जी हुजूर, मैं और मेरा घोड़ा दोनों के पास हथियार थे' | शहंशाह ने पूछा 'तुम्हे हथियार कैसे मिले' | मैंने कहा 'हुजूर, सैयद अब्दुल्ला खां से मिले' | मैंने सारा हाल कह सुनाया, तब शहंशाह ने अशर्फियों से भरी टोकरी में हाथ डाले और मुझे 96 अशर्फियां दीं | फिर मैं अब्दुल नबी के पास गया | अब्दुल नबी ने मुझसे पूछा 'तुमने राणा से लड़ाई के वक्त मेरी तरफ से खुदा से दुआ मांगी या नहीं' | मैंने कहा 'मैंने तुम्हारी तरफ से उस वक्त ये दुआ मांगी थी कि
ए खुदा, जो मुहम्मद के मज़हब की हिफाज़त करता है, तू भी उसकी हिफाज़त कर और जो उस मज़हब की हिफाज़त नहीं करता, तू भी उसकी हिफाज़त मत कर |"
> रामप्रसाद ने अन्न-जल का त्याग किया व 18 दिन बाद इस स्वामिभक्त हाथी ने अपने प्राण त्याग दिये
"मेवाड़ की वैणगढ़ विजय"
महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह जी ने मेवाड़ का साथ देते हुए भीण्डर के पास स्थित वैणगढ़ दुर्ग पर तैनात मुगलों को मार-भगाकर कब्जा किया
"मानसिंह की कार्यवाही"
> मानसिंह ने महाराणा प्रताप पर निगरानी रखने के लिए कुतुबुद्दीन मुहम्मद खां, कुलीज खां व आसफ खां को नियुक्त किया
> मानसिंह ने एक सिपहसालार के नेतृत्व में फौजी टुकड़ी भेजकर आसपास के इलाके में जो भी लोग मिले, उनको बन्दी बनाने का आदेश दिया
इस सिपहसालार ने कुछ लोगों को बन्दी बनाया
"मुगल थाने"
मुगल फौज जब किसी क्षेत्र पर अधिकार करती तो वहां शाही थाने तैनात किए जाते थे | इस तरह के थानों में 100 से 1000 सैनिकों का लश्कर होता था |
मेवाड़ में गोगुन्दा, मोही, मदारिया, उदयपुर, केलवाड़ा, देबारी प्रमुख मुगल थाने होते थे, जहां लश्कर 1000 से भी ज्यादा होता था |
छोटे मुगल थानों में 100-200 सैनिकों का लश्कर होता था
* अगले भाग में महाराणा प्रताप के मेवाड़ से बाहर के 5 प्रमुख मित्रों द्वारा मुगल विद्रोह के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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