Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 41




* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 105

जून-अक्टूबर, 1576 ई.


"महाराणा प्रताप के मित्रों द्वारा मुगल विद्रोह"
* महाराणा प्रताप ने अपने 5 मित्रों को पत्र लिखे, जिसमें उन्होंने लिखा कि आप सभी अपने-अपने क्षेत्रों में मुगलों के खिलाफ विद्रोह करें

ये मित्र हैं :-

१) मारवाड़ के राव चन्द्रसेन राठौड़ :-

> जन्म :- 1541 ई.

> पिता :- राव मालदेव राठौड़

> राव चन्द्रसेन ने अकबर के नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार करने से मना किया था

> महाराणा प्रताप की बहन बाईजीलाल सूरजदे से राव चन्द्रसेन का विवाह हुआ था

> उपनाम :- मारवाड़ का राणा प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, भूला बिसरा राजा

> कार्यवाही :- राव चन्द्रसेन राठौड़ के पास मारवाड़ का राज तो नहीं था, लेकिन महाराणा का खत मिलने पर इन्होंने अपने दम पर मारवाड़ के पहाड़ी इलाकों में मुगल छावनियों पर हमले कर लूटमार करना शुरु किया

२) जालौर के नवाब ताज खां :-
> कार्यवाही :- इन्होंने पठान होते हुए भी महाराणा प्रताप का साथ दिया व अरावली के दोनों तरफ लूटपाट व फसाद करना शुरु कर दिया

३) बूंदी के राव दूदा हाडा :-

> ये बूंदी के राव सुर्जन हाडा के बड़े पुत्र थे

> 1569 ई. में जब राव सुर्जन ने अकबर की अधीनता स्वीकार की, तो राव दूदा को भी मुगल दरबार में हाजरी देनी होती थी | मौका देखकर ये वहां से निकले और महाराणा प्रताप का साथ देने मेवाड़ आए |

४) सिरोही के राव सुरताण देवड़ा :-

> जन्म :- 1559 ई.

> इन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में छोटी-बड़ी कुल 52 लड़ाईयां लड़ी, पर एकमात्र "दंताणी के युद्ध" में विजयी हुए, जिसका हाल मौके पर लिखा जाएगा

> इनका नाम इतिहास में एक गुमनाम योद्धा की तरह ही रहा, लेकिन इनके बारे में एक दोहा प्रचलित है

"नाथ उदयपुर न नम्यो, नम्यो न अरबुद नाथ"

> 17 वर्षीय राव सुरताण के पास जब महाराणा का खत पहुंचा, तो इन्होंने देवड़ा राजपूतों को साथ लेकर सिरोही की पहाड़ियों में विद्रोह कर दिया

५) ईडर के राय नारायणदास राठौड़ :-


> ये महाराणा प्रताप के ससुर थे व महाराणा से बराबर सम्पर्क में रहते थे |

> कार्यवाही :- इन्होंने गुजरात-मेवाड़ सीमा व ईडर की पहाड़ियों में मुगल सल्तनत से बगावत का शुभारम्भ कर दिया

* इस तरह हल्दीघाटी युद्ध के बाद मात्र पांच महीनों में महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के साथ-साथ मारवाड़, सिरोही, जालौर, बूंदी व ईडर में अकबर के विरोधी खड़े कर दिए

* इधर जिस वक्त गोगुन्दा में मुगल फौज कैदियों की तरह दिन काट रही थी, तभी महाराणा प्रताप ने बचे-खुचे राजपूतों व भीलों को साथ लेकर गोडवाड़ पर हमला किया व मुगल छावनियों को ध्वस्त कर लूटते हुए कुम्भलगढ़ पहुंचे |

* कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप ने "गोगुन्दा के युद्ध" की योजना बनाई, जिसके बारे में अगले भाग में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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