* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 147
1583 ई.
* महाराणा प्रताप का छापामार युद्धों में साथ देने वाले बेदला के बलभद्र सिंह चौहान का देहान्त हुआ
ये महाराणा प्रताप की एक रानी के भाई थे
1584 ई.
* महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी युद्ध व छापामार युद्धों में साथ देने वाले देवगढ़ के रावत सांगा चुण्डावत व जवास के रावत बाघ सिंह का देहान्त हुआ
रावत चन्द्रभान जवास के शासक बने व महाराणा प्रताप का साथ दिया
* इसी वर्ष महाराणा प्रताप के पौत्र व कुंवर अमरसिंह के पुत्र भंवर कर्ण सिंह का जन्म हुआ
* इन्हीं दिनों महाराणा प्रताप मांडलगढ़ और चित्तौड़गढ़ दुर्ग के आसपास की समतल भूमि पर तैनात मुगलों पर हमले करने लगे
"महाराणा प्रताप के विरुद्ध अकबर के सेनापति जगन्नाथ कछवाहा का मेवाड़ अभियान"
* महाराणा प्रताप द्वारा दिवेर समेत कई मुगल थानों पर हमले और विजय के बारे में अबुल फजल लिखता है
"राणा की हरकतें बड़ी खतरनाक होती जा रही थीं | खबर आई कि राणा पहाड़ी की घाटियों में से निकल आया है और उसने फिर से कलह करना शुरु कर दिया है | वह कमजोरों पर जुल्म कर रहा था | शरारतियों को सज़ा देना खुदा की इबादत है, इस खातिर आमेर के जगन्नाथ कछवाहा को मुगल फौज की कमान और अजमेर का सूबा सौंपकर राणा को खदेड़ने भेजा गया | जफ़र बेग को बख्शी बनाया गया"
* जगन्नाथ कछवाहा :-
ये आमेर के भारमल्ल का बेटा व मानसिंह का काका था | हल्दीघाटी युद्ध में राजा रामशाह तोमर व रामदास राठौड़ की हत्या इसी ने की थी |
जगन्नाथ कछवाहा का मेवाड़ अभियान |
5 दिसम्बर, 1584 ई.
* जगन्नाथ कछवाहा हजारों की मुगल फौज के साथ मेवाड़ आया
* जगन्नाथ कछवाहा के साथ आने वाले प्रमुख मुगल सिपहसालार :-
> सैयद राजू :- इसने हल्दीघाटी युद्ध में भी भाग लिया था
> मिर्जा जफ़र बेग :- इसे बख्शी बनाया गया
> वज़ीर ज़मील
> सैफ उल्लाह
> मुहम्मद खां
> जान मुहम्मद
> शेर बिहारी
* शाही फौज के मेवाड़ में आने की खबर सुनकर महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के आम लोगों में हुक्म जारी करवाया कि
"जो कोई भी एक बिस्वा ज़मीन भी जिराअत (खेती) करके मुगल फौज को हासिल देगा, उसका सर कलम कर दिया जावेगा"
* जगन्नाथ कछवाहा मांडलगढ़ पहुंचा
उसने मोही व मदारिया पर कब्जा किया
उसने मांडलगढ़ सैयद राजू को सौंप दिया व खुद महाराणा प्रताप की खोज में लग गया
* जगन्नाथ कछवाहा ने महाराणा प्रताप के निवास स्थान पर हमला किया, तो महाराणा प्रताप वो जगह छोड़कर निकले और बेहतरीन छापामार प्रणाली अपनाते हुए दूसरी पहाड़ी से निकलकर हजारों की मुगल फौज पर अचानक आक्रमण कर दिया, जिससे जगन्नाथ कछवाहा बचने में कामयाब रहा, पर मुगल फौज को भारी क्षति हुई
इस घटना को अबुल फजल कुछ इस तरह लिखता है :-
"जगन्नाथ कछवाहा ने राणा के डेरे पर हमला किया, पर राणा अपने एक खैरख्वाह के इशारे से बचकर निकल गया | लगा जैसे राणा भाग गया, पर उसने अचानक दूसरी तरफ से पहाड़ियों से निकलकर शाही फौज पर जोरदार हमला किया, जिससे शाही फौज में हडकम्प मच गया | राणा हमला करने के बाद फिर पहाड़ियों में चला गया | इस तरह शाही फौज को यहां कोई जीत नसीब नहीं हुई"
* अगले भाग में जगन्नाथ कछवाहा व महाराणा प्रताप के बीच हुए छापामार युद्धों के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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