* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 146
"सागरसिंह का सिरोही पर आक्रमण"
> जगमाल के छोटे भाई सागरसिंह ने मेवाड़ महाराणा से बगावत करके अकबर की शरण में जाकर उसकी फौजी मदद ली और सिरोही पर चढाई की
> अकबर ने इन सिपहसालारों को सिरोही फतह करने भेजा :-
१) मेवाड़ का सागरसिंह सिसोदिया
२) मारवाड़ का मोटा राजा उदयसिंह
३) जामबेग
५) बीजा देवड़ा
> अकबर की फौज की तरफ से लड़ते हुए बीजा देवड़ा मारा गया
> महाराणा प्रताप के मित्र व सम्बन्धी सिरोही के राव सुरताण देवड़ा पहाड़ों में चले गए और उनकी तरफ से ये राजपूत लड़ते हुए काम आए :-
* देवड़ा समरा नरसिंहोत
* चीबा
* जैता
* तोगा सूरावत
* देवड़ा पत्ता
> आखिरकार सागरसिंह ने सिरोही पर फतह हासिल की और भाई जगमाल की मृत्यु का बदला लेने के लिए सिरोही के वीर जब युद्ध में मूर्छित पड़े थे, तब उनको एक-एक करके कत्ल किया और अपनी क्रूरता का परिचय दिया
> सिरोही की तरफ से लड़ते हुए प्रसिद्ध चारण कवि दुरसा आढ़ा मूर्छित पड़े थे और सागरसिंह उनको मारने करीब आया कि तभी दुरसा आढ़ा ने कहा कि "मैं एक चारण हूं और मुझे इस तरह मारना आपको शोभा नहीं देता"
सागरसिंह ने कहा कि "मैं कैसे मान लूँ कि तुम चारण हो, अगर तुम चारण हो तो अभी-अभी मैंने जिस देवड़ा समरा को मारा उसके बारे में दोहा सुनाओ"
तब दुरसा आढ़ा ने दोहा सुनाया कि
"धर रावां जश डूंगरां, वृद पोता सत्र हाण |
समरे मरण मुधारियो, चहुं थोकां चहुँवाण ||"
> दोहा सुनकर सागरसिंह ने दुरसा आढ़ा को जीवनदान दिया और अपने साथ अकबर के यहां ले गया
(ये चारण कवि दुरसा आढ़ा वही हैं, जिन्होंने बाद में महाराणा प्रताप के देहान्त पर भरे मुगल दरबार में अकबर के रोने का उल्लेख किया था)
* अगले भाग में अकबर के सेनापति जगन्नाथ कछवाहा के मेवाड़ अभियान के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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