मायरा स्थित शस्त्रागार में महाराणा प्रताप |
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 110
अक्टूबर-नवम्बर, 1576 ई.
"अकबर द्वारा नाकेबन्दी"
> महाराणा प्रताप की खोज में अकबर ने नाडोल में सैयद हाशिम व बीकानेर के राजा रायसिंह (महाराणा प्रताप के बहनोई) को नियुक्त किया
> अकबर ने तरसुन खां को पट्टन-गुजरात में तैनात किया, ताकि महाराणा प्रताप गुजरात न जा सकें
"अकबर का गोगुन्दा पर हमला"
अकबर ने कुतुबुद्दीन खां, मानसिंह और भगवानदास को शाही फौज के साथ गोगुन्दा भेजा
महाराणा प्रताप गोगुन्दा की प्रजा और समस्त सैनिकों के साथ गोगुन्दा को वीरान कर पहाड़ों में चले गए
गोगुन्दा पर एक बार फिर मुगलों का अधिकार हुआ
> अबुल फजल लिखता है
"शहंशाह के गोगुन्दा पहुंचने पर राणा पहाड़ियों में छिप गया | शहंशाह ने कुतुबुद्दीन खां, कुंवर मानसिंह और राजा भगवानदास को हुक्म दिया कि वे राणा कीका के मुल्क को रौंद डाले | राणा का पीछा करे और उसे खत्म करे"
"महाराणा प्रताप का दोबारा गोगुन्दा पर आक्रमण और विजय"
कुतुबुद्दीन खां, मानसिंह और भगवानदास जहां भी जाते वहां महाराणा प्रताप अचानक पहाड़ियों से निकलकर उन पर हमले करते
इन्हीं हमलों से तंग आकर इन तीनों को गोगुन्दा छोड़कर जाना पड़ा, लेकिन गोगुन्दा में इन्होंने एक शाही थाना तैनात कर दिया था
महाराणा प्रताप ने बारिश के समय अचानक गोगुन्दा पर आक्रमण किया व विजयी हुए
गोगुन्दा पर महाराणा प्रताप का अधिकार हुआ
"बदनोर की लड़ाईयाँ"
> अकबर ने बदनोर पर हमला कर दिया
बदनोर के मेड़तिया राठौड़ों ने सामना किया और वीरगति को प्राप्त हुए
बदनोर दुर्ग |
इस समय बदनोर के ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया महाराणा प्रताप के साथ थे
> महाराणा प्रताप ने बदनोर के ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया की जागीर छीन जाने के कारण उनको विजयपुर का परगना जागीर में दिया
> कुछ समय बाद महाराणा प्रताप ने बदनोर पर हमला कर मुगल फौज को मार-भगा कर विजय प्राप्त की व बदनोर की जागीर फिर से ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया को दे दी
* अगले भाग में शक्तिसिंह जी द्वारा भैंसरोडगढ़ विजय व महाराणा प्रताप के समक्ष माला सांदू के पश्चाताप के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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