महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास
महाराणा प्रताप फौज समेत हल्दीघाटी दर्रे से गुजरते हुए |
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 87
1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"
"महाराणा प्रताप द्वारा मानसिंह को जीवनदान"
> मानसिंह के नेतृत्व में मुगल फौज मांडलगढ़ से निकली और मोही गांव में पड़ाव डाला | मोही से निकलकर मोलेला गांव में पड़ाव डाला |
> महाराणा प्रताप सेना सहित गोगुन्दा से रवाना हुए
जहां-जहां से महाराणा प्रताप की कमान में मेवाड़ी फौज गुजरी, लोगों ने घरों से बाहर निकलकर इस सेना को प्रणाम किया
> महाराणा प्रताप ने खमनौर से 10 मील दक्षिण-पश्चिम में लोसिंग (ढाणा) गाँव में पड़ाव डाला
यहां एक घटना हुई कि मानसिंह इस बात से अनजान था कि महाराणा प्रताप की फौज का पड़ाव मोलेला गांव से महज़ 12 मील के फासिले पर है
मोलेला गांव से मानसिंह 1000 सवारों समेत शिकार के लिए निकला और महाराणा प्रताप की फौज के पड़ाव के बहुत नजदीक आ गया
महाराणा प्रताप ने पूरबिया दुरस परवतसिंहोत व सिसोदिये नेता भाखरोत को गुप्तचर के तौर पर मानसिंह का पता लगाने भेजा
इन गुप्तचरों ने महाराणा प्रताप को इस बात की सूचना दी
महाराणा प्रताप के पास मानसिंह को पराजित करने का सुनहरा अवसर था
सभी सामन्तों ने मानसिंह पर हमला करने का प्रस्ताव रखा
पर बड़ी सादड़ी के झाला मान/बींदा ने कहा कि हम मानसिंह को धोखे से नहीं हरा सकते
महाराणा प्रताप ने भी झाला मान की इस बात पर सहमति जताई
मानसिंह मोलेला चला गया और अगले दिन उसे पता चला कि उसे जीवनदान मिला है
21 जून, 1576 ई.
"दोनों फौजों का खमनौर पहुंचना"
> हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून को नहीं, 21 जून को लड़ा गया था
> आधी रात को मोलेला गांव से मानसिंह ने खमनौर की तरफ कूच किया और सूरज उगने से पहले खमनौर के मैदान में अपनी फौज को जंग के मुताबिक जमाना शुरु कर दिया
> लोसिंग से महाराणा प्रताप हल्दीघाटी पहुंचे
महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी दर्रे पर अपने 5000 सैनिकों को जमा किया
हल्दीघाटी दर्रे से एक बार में केवल 1-2 व्यक्ति ही जा सकते थे
हल्दीघाटी दर्रा |
"हळदीघाटी हरोळ,
घमंड करण अरी घणा |
आरण करण अडोल,
पहोच्यो राण प्रतापसी ||"
> कुरान की आयत 25 में हल्दीघाटी युद्ध व महाराणा प्रताप के विरोध में लिखा है कि
"उनसे जंग करो, जो अल्लाह और कयामत के दिन में यकिन नहीं करते | जो कुछ अल्लाह और उसके पैगम्बर ने निषेध कर रखा है, उसका निषेध नहीं करते | उस रास्ते पर नहीं चलते, जो सच का रास्ता है और जो उन लोगों का है, जिन्हें कुरान दी गई है | तब तक उनसे जंग करो, जब तक वे तोहफे ना दें, पूरे झुका न दिए जाएँ, नेस्तनाबूद न कर दिए जाएँ"
"महाराणा प्रताप की बादशाह बाग पर विजय"
हल्दीघाटी युद्ध की शरुआत में मुगल फौज की एक टुकड़ी बादशाह बाग में जमा हुई
सूरज उगते ही बादशाह बाग पर महाराणा प्रताप ने आक्रमण कर मुगल फौजी टुकड़ी को खदेड़ा | मुगल फौजी टुकड़ी भागकर खमनौर में पहुंची, जहां कुल मुगल फौज जमा थी |
"मानसिंह की कूटनीति"
महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी में कुछ वक्त मानसिंह का इन्तजार किया, पर वह नहीं आया
मानसिंह जानता था कि हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप को पराजित नहीं किया जा सकता
मुगल खुले मैदानों में लड़ने के अभ्यस्त होते थे | साथ ही खुले मैदानों में तोपों का उपयोग आसान होता था |
मानसिंह खमनौर ही रुका, इसलिए महाराणा प्रताप ने ही खमनौर के खुले मैदान में युद्ध लड़ने का फैसला किया
महाराणा प्रताप हल्दीघाटी दर्रे से निकलकर खमनौर गाँव के पास की समतल भूमि (वर्तमान में रक्त तलाई) में जा पहुंचे
* कर्नल जेम्स टॉड लिखता है "अपने राणा का अनुसरण करते हुए सब वहीं पहुंच रहे थे, जहाँ युद्ध सबसे भयंकर होना था | वंश के वंश प्रचण्ड निर्भीकता के साथ आगे बढ़ रहे थे"
> अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध में दोनों पक्षों की सैन्य संख्या, हथियार, हाथी-घोड़ों की सही संख्या के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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