Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 22

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास

मेवाड़ के इतिहास का भाग - 86

"हल्दीघाटी का युद्ध"

1576 ई.

* अकबर ने अजमेर से मानसिंह को फौज समेत रवाना किया

मानसिंह मांडलगढ़ दुर्ग (भीलवाड़ा) पहुंचा

मांडलगढ़ में मानसिंह 2 माह (मध्य अप्रैल से मध्य जून) तक रुका

"हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व मेवाड़ी सभा"

महाराणा प्रताप के बहनोई शालिवाहन तोमर सबसे पहले मानसिंह के नेतृत्व में आने वाली मुगल फौज के पड़ाव की खबर लेकर महाराणा प्रताप के पास पहुंचे

महाराणा प्रताप राजा रामशाह तोमर के घर पहुंचे और सभी सामन्तों को भी वहीं बुलाकर सलाह-मशवरा किया

इस सभा में बड़ी सादड़ी के झाला बींदा/मानसिंह, महाराणा के मामा जालौर के मानसिंह सोनगरा, देलवाड़ा के झाला मानसिंह, राव संग्रामसिंह, सरदारगढ़ के भीमसिंह डोडिया, बिजौलिया के डूंगरसिंह पंवार, शेरखान चौहान, सेढू महमूद खां, पत्ता चुण्डावत के पुत्र कल्याण सिंह, जालम राठौड़, नंदा प्रतिहार, नाथा चौहान, हरिदास चौहान, दुर्गादास, प्रयागदास भाखरोत, कूंपा के पुत्र जयमल, मंत्री भामाशाह आदि उपस्थित थे

राजा रामशाह तोमर ने प्रस्ताव रखा कि मुगलों से खुले में युद्ध लड़ना ठीक न रहेगा

सभी सामन्तों समेत महाराणा प्रताप ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि मुगल फौज का नेतृत्व मानसिंह कर रहा था

(यहां अकबर की रणनीति काम आई, कि मानसिंह को सेनापति बनाने के बाद महाराणा प्रताप को सामने आना ही होगा)

(इस सभा कि जानकारी 'राणा रासौ' ग्रन्थ से ली गई है)

"महाराणा प्रताप की मांडलगढ़ पर चढाई"

मानसिंह फौज समेत मांडलगढ़ पहुंच तो चुका था, पर उसने एक बार फिर महाराणा प्रताप को सन्धि के लिए मनाना उचित समझा

(बहुत से इतिहासकारों के अनुसार मानसिंह एक ही बार महाराणा प्रताप को सन्धि हेतु मनाने पहुंचा था, पर यहां कुछ प्रमाण रखे जाते हैं, जिससे साबित होता है कि मानसिंह 2 बार महाराणा प्रताप को मनाने गया था)

अबुल फजल लिखता है

"मानसिंह बादशाही फौज के साथ मांडलगढ़ पहुंचा | शहंशाह ने मानसिंह के लिए हुक्म भिजवाया कि वह (मानसिंह) कुछ वफादार लोगों के साथ जाए और राणा कीका (राणा प्रताप) को नींद से जगाकर शहंशाह के दरबार का रास्ता दिखा दे | नींद से जागने के इस मौके पर राणा ने बिना अक्लमन्दी से अपनी ज़िद और भी बढ़ा ली | उसने शहंशाह के भाग्य को नज़रअन्दाज कर दिया | राणा ने गुरुर में आकर बादशाही लश्कर का ख्याल न करके मानसिंह को अपना मातहत जमींदार समझते हुए मांडलगढ़ पर हमला करने का इरादा किया और वह फौज लेकर तबाही मचाने आगे चढ़ आया, पर उसके खैरख्वाहों ने उसे एेसा करने से रोका"

मानसिंह पर लिखे गए ग्रन्थ 'मानप्रकाश' में लिखा है

"मांडलगढ़ से निकलकर अग्नि के समान तेजस्वी राजा मानसिंह ने महाशक्तिशाली राणा प्रताप से कहा कि 'तुम्हे सर्वस्व देकर बादशाह की सेवा करनी है' | राजा मान की बात सुनकर राणा अत्यन्त क्रुद्ध हो गया और राजा मानसिंह को मारने के लिए मांडलगढ़ आ पहुंचा"

निष्कर्ष रुप में ये कहा जा सकता है कि मानसिंह महाराणा प्रताप को दोबारा सन्धि के लिए मनाना नहीं चाहता होगा, क्योंकि पिछली बार का अपमान वह भूला नहीं था | पर ये अकबर का हुक्म था, इसलिए वह जरुर महाराणा प्रताप को मनाने गया होगा | वहां मानसिंह ने महाराणा प्रताप को बातों-बातों में भड़का दिया, जिससे महाराणा प्रताप ने क्रोधवश मांडलगढ़ पर चढ़ाई करने का फैसला किया |

अकबरनामा व मानप्रकाश ग्रन्थ के अनुसार महाराणा प्रताप मांडलगढ़ तक पहुंच चुके थे या मांडलगढ़ के लिए निकल चुके थे, पर राणा रासौ ग्रन्थ के अनुसार महाराणा प्रताप ने मांडलगढ़ पर हमला करने का सिर्फ विचार किया था, चढाई नहीं |

यहां राणा रासौ की बात गलत साबित होती है, क्योंकि यदि महाराणा प्रताप ने सिर्फ विचार ही किया होता, तो ये बात अबुल फजल को पता न चलती |

महाराणा प्रताप ने चढाई की, पर सामन्तों द्वारा मनाने पर तत्काल हमला न करके कुछ समय बाद तैयारी से हमला करना बेहतर समझकर गोगुन्दा लौट गए

> अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध से पहले महाराणा प्रताप द्वारा मानसिंह को मिले जीवनदान व कुछ अन्य घटनाओं के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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