* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 144
17 अक्टूबर, 1583 ई.
"दत्ताणी का युद्ध"
* ये युद्ध अकबर की फौज व सिरोही के राव सुरताण देवड़ा के मध्य हुआ
(इस युद्ध का वर्णन महाराणा प्रताप के इतिहास में इसलिए किया गया है क्योंकि राव सुरताण महाराणा प्रताप के मित्र थे व महाराणा के निर्देशों पर ही मुगल विरोध कर रहे थे | इसके अतिरिक्त इस युद्ध में मुगल फौज का नेतृत्व महाराणा के भाई जगमाल ने किया था, इसलिए दत्ताणी के युद्ध का वर्णन यहां करना आवश्यक है)
* जगमाल सिसोदिया की पत्नी सिरोही के मानसिंह की पुत्री थी, जिस वजह से उसने अपने पति जगमाल से कहा कि मेरे पिता के देहान्त के बाद सुरताण कौन होता है सिरोही पर राज करने वाला, वहां तो हमारा हक ज्यादा होता है
* एक दिन राव सुरताण की अनुपस्थिति में जगमाल ने बीजा देवड़ा के साथ मिलकर सिरोही पर हमला किया, लेकिन सिरोही के सामन्तों से पराजित होकर ये पीछे लौट गए
* जगमाल अकबर से मदद मांगने गया, तो अकबर ने शाही फौज तीन सेनापतियों के नेतृत्व में सिरोही भेजी :-
१) मेवाड़ का जगमाल सिसोदिया
२) दांतीवाड़ा का कोली सिंह
३) मारवाड़ का रायसिंह (राव चन्द्रसेन का तीसरा पुत्र)
* जगमाल ने इस फौजी मदद से सिरोही पर चढाई की
राव सुरताण अपने परिवार व फौज सहित सिरोही के महल छोड़कर माउन्ट आबू स्थित अचलगढ़ दुर्ग में चले गए
जगमाल ने सिरोही जीतकर अचलगढ़ पर चढाई की
राव सुरताण ने दुर्ग से निकलकर दत्ताणी नामक स्थान पर अपनी कुल फौज जमा की
* दत्ताणी के युद्ध में राव सुरताण के नेतृत्व में सिरोही की फौज के हाथों अकबर के तीनों सेनापति जगमाल, रायसिंह व कोली सिंह मारे गए
जगमाल सिसोदिया के पीछे उसकी 6 पत्नियाँ सती हुईं
राव सुरताण देवड़ा ने दत्ताणी के युद्ध में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की
* सिरोही के इतिहास के इस सबसे बड़े युद्ध के बाद एक कहावत चल पड़ी कि
"नाथ उदयपुर न नम्यो, नम्यो न अर्बुद नाथ"
अर्थात् ना तो उदयपुर के महाराणा प्रताप ने पराजय स्वीकार की और ना ही सिरोही के राव सुरताण ने
* अबुल फजल ने मुगल फौज की नाकामयाबी को छुपाते हुए इस युद्ध का वर्णन ना करते हुए सिर्फ इतना लिखा कि
"जगमाल और रायसिंह सिरोही के महलों में सो रहे थे कि तभी राव सुरताण ने धोखे से इनको मार दिया"
* अगले भाग में जगमाल के छोटे भाई सागरसिंह द्वारा मेवाड़ से बगावत करके अकबर की शरण लेने के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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