Saturday 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 50



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 114

नवम्बर, 1576 ई.

"तीसरी बार मुगलों का गोगुन्दा पर अधिकार"


अबुल फजल लिखता है "इन दिनों शहंशाह ने एक फौज गोगुन्दा भेजी | दरअसल इस वक्त सुनने में आया कि राणा ने फिर से पहाड़ियों से निकलकर कलह करना शुरु कर दिया है | उसका दिमाग शैतानी खयालों से भरा हुआ था | राजा भगवानदास, कुंवर मानसिंह, बैरम खां का बेटा अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना, कासिम खां मीरबहर वगैरह बहुत से नामी सिपहसालारों को इस इलाके में भेजा गया | शहंशाह के काफी ध्यान देने की वजह से इस इलाके में बगावत के काँटे साफ कर दिये गए"

"रामा गाँव में मुगलों की असफलता"


अबुल फजल लिखता है "शाही फौज ने राणा को रामा गांव में ढूंढा, पर कुछ हाथ न लगा | शहंशाह ने गुस्से में आकर कुछ शाही सिपहसालारों को नौकरी से निकाल दिया"

"अकबर का उदयपुर पर अधिकार व कत्लेआम"

अकबर ने उदयपुर जीतकर उसका नाम मुहम्मदाबाद रख दिया

अकबर ने उदयपुर में सोने के सिक्के ढलवाए, जिन पर लिखा था "सिक्का ढाला गया मुहम्मदाबाद उर्फ उदयपुर में, जो जीता जा चुका है"

अकबर ने उदयपुर को अजमेर परगने का हिस्सा बना दिया

अकबर ने उदयपुर की खुबसूरती की तारीफ की व यहां के लोगों को अपने रुतबे से प्रभावित करने और उदयपुर के सौन्दर्य का लाभ उठाने के लिए अकबर कुछ दिन यहीं रहा

जाते समय उदयपुर में अकबर ने कत्लेआम करवा दिया, जिससे सैकड़ों लोगों को प्राण गंवाने पड़े

27 नवम्बर, 1576 ई.

"अकबर की बांसवाड़ा विजय व महाराणा प्रताप का पलटवार"

* अकबर ने उदयपुर के पहाड़ी क्षेत्रों का उत्तरदायित्व भगवानदास व अब्दुल्ला खान को सौंपकर बांसवाड़ा कूच किया

बांसवाड़ा के रावल प्रताप सिंह ने अकबर के शिविर में जाकर उसकी अधीनता स्वीकार की

* महाराणा प्रताप की दहशत के बारे में अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है

"मैं उस वक्त बीमारी के सबब से वतन में रह गया था और बांसवाड़ा के लश्कर में जाना चाहता था, मगर हिंडोन में अब्दुल्ला खान ने वह रास्ता बन्द व खतरनाक बताकर मुझको लौटाया, तब मैं ग्वालियर सारंगपुर और उज्जैन के रास्ते से देपालपुर में जाकर बादशाह के पास हाजिर हुआ"

26 दिसम्बर, 1576 ई.

* अकबर को बांसवाड़ा में खबर मिली की महाराणा प्रताप ने फिर से पहाड़ियों से निकलकर शाही थानों पर हमले करना शुरु कर दिया

महाराणा प्रताप ने शाही लश्कर के आगरा जाने का रास्ता बन्द कर दिया

अकबर ने उसी वक्त एक फौज महाराणा के पीछे भेजी

अबुल फजल लिखता है

"बांसवाड़ा में शहंशाह के पास खबर आई कि राणा ने फिर से पहाड़ियों और घाटियों के जरिए कोहराम मचाना शुरु कर दिया है और वह शैतानी खयालों से भरकर तबाही कर रहा है"

* अगले भाग में अकबर की डूंगरपुर विजय, ईडर के युद्ध व महाराणा प्रताप का आवरगढ़ में पड़ाव डालने के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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