Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 33

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 97

21 जून, 1576 ई.

"हल्दीघाटी का युद्ध"


* मेवाड़ी ख्यातों के अनुसार महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी में तीरों के अलावा 7 गहरे घाव लगे
(3 भाले से, 3 तलवार से, 1 बन्दूक की गोली)

* तबकात-ए-अकबरी में निजामुद्दीन अहमद बख्शी लिखता है

"राणा कीका तब तक बड़ी बहादुरी से लड़ता रहा, जब तक कि वह तीरों और भालों की चोटों से जख्मी न हो गया"

* अबुल फजल लिखता है "गर्मियों के सबब से गनीम (लूटेरे) का पीछा शाही फौज ने नहीं किया"

(गनीम यहां महाराणा प्रताप को कहा गया है)

* 'अकबरी दरबार' में मौलाना मुहम्मद हुसैन आजाद लिखता है

"नमक हलाल मुगल और मेवाड़ के सूरमा ऐसे जान तोड़ कर लडे़ कि हल्दीघाटी के पत्थर इंगुर हो गए | पर मेवाड़ी फौज की बहादुरी उस फौज के सामने कब तक टिकती, जिसमें अनगिनत तोपें और रहकलें आग बरसाती थीं और ऊँटों के रिसाले आंधी की तरह दौड़ते थे | हालांकि राणा की फौज हार गई, पर उस वक्त राणा के लिए उसका बचकर निकलना ही बहुत बड़ी फतह थी"

"स्वामिभक्त चेतक का बलिदान"

> महाराणा प्रताप इस बात से अनजान थे कि जख्मी चेतक महज 3 पैरों पर चल रहा है | आगे एक चौड़ा नाला आ गया |

"आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोड़ा कैसे करावे पार |
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ||"


> अपने स्वामी की जान बचाने के बाद चेतक ने एक इमली के पेड़ के नीचे अपना बलिदान दे दिया, तब से इस इमली का नाम "खोड़ी इमली" पड़ गया | माना जाता है कि आज भी इस इमली का ठूंठ मौजूद है |

> इस तरह महाराणा प्रताप और चेतक का साथ चार वर्ष (1572-76 ई.) तक रहा


> बलीचा गाँव में स्वामिभक्त चेतक की समाधि स्थित है

"महाराणा प्रताप व महाराज शक्तिसिंह का मिलन"

> महाराणा प्रताप के पीछे आ रहे खुरासन खां और मुल्तान खां को मारकर शक्तिसिंह जी ने महाराणा से भेंट की व माफी मांगी

(हालांकि इस समय महाराणा प्रताप अकेले नहीं थे | उनके साथ कुछ सामन्त भी थे | महाराज शक्तिसिंह जी ने इस घटना के बाद 18 वर्षों तक महाराणा प्रताप का साथ दिया)

> महाराणा प्रताप, शक्तिसिंह जी व सामन्तों ने स्वामिभक्त चेतक का अन्तिम संस्कार किया

* महाराणा प्रताप घायल अवस्था में एक मूर्ति के पास आकर रुके | ये मूर्ति हरिहर (भगवान शिव व भगवान विष्णु के सम्मिलित रुप) की थी | ये मूर्ति वर्तमान में हरिहर मन्दिर में स्थापित है |
महाराणा प्रताप ने इसी मूर्ति के पास बैठकर विश्राम किया और यहीं पर उन्हें सूचना मिली की झाला मान/झाला बींदा वीरगति को प्राप्त हुए | महाराणा प्रताप ने झाला मान/झाला बींदा की याद में उस स्थान का नाम "बिदराणा" रख दिया, जो कालान्तर में "बदराणा" हो गया | इस स्थान पर इस मुर्ति की स्थापना करवाकर महाराणा प्रताप ने हरिहर मन्दिर का निर्माण करवाया |

* अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति पाने वाले लगभग सवा सौ प्रमुख योद्धाओं के नाम लिखे जाएंगे

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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