महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास
रामप्रसाद व मुगल हाथी के बीच लड़ाई |
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 95
21 जून, 1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"
* जंग के दौरान एक दिलचस्प वाक्या हुआ, जिसे मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी कुछ इस तरह लिखता है :-
"मैंने आसफ खां से पूछा कि मेवाड़ी राजपूतों और कछवाहों में फर्क करना मुश्किल हो रहा है, मैं किस पर निशाना लगाउँ | आसफ खां ने कहा 'दोनों ओर से कोई भी राजपूत मरे, फायदा इस्लाम का ही है, तुम बेखौफ होकर निशाना लगाओ' | वहां भीड़ इतनी ज्यादा थी कि मेरा एक भी वार खाली नहीं गया"
"हाथियों की भिड़न्त"
* महाराणा प्रताप की तरफ से लगभग 100 हाथियों ने हल्दीघाटी युद्ध में भाग लिया, जिनमें से प्रमुख हैं :- रामप्रसाद, लूणा, चक्रबाप, खांडेराव
* लूणा का बलिदान :-
> बंदायूनी लिखता है "मानसिंह के ठीक पीछे वाले हाथी पर हाथियों का दारोगा हुसैन खां सवार होकर जंग में शामिल हुआ | कुंवर मानसिंह ने अपने हाथी के महावत की जगह बैठकर बड़ी बहादुरी दिखाई"
> अबुल फजल लिखता है "दुश्मन (राणा) के हाथी लूणा का सामना करने की खातिर जमाल खां शाही हाथी गजमुक्त को आगे लेकर आया | इन दो पहाड़ जैसे हाथियों की भिड़न्त इतनी खतरनाक हुई, कि सब घबरा गए | लूणा ने शाही हाथी गजमुक्त को जख्मी कर दिया"
> लूणा के महावत को बन्दूक की गोली लगी, कुछ देर बाद लूणा ने भी अपने प्राण त्याग दिए
* रामप्रसाद की बहादुरी :-
> 'रामप्रसाद' महाराणा प्रताप का प्रिय हाथी था | इस हाथी की मांग अकबर ने सन्धि प्रस्तावों के जरिए की थी, पर महाराणा प्रताप ने इस मांग को ठुकरा दिया था |
अबुल फजल लिखता है "राणा के रामप्रसाद हाथी को लेकर शाही दरबार में कई बार बात होती थी"
> हल्दीघाटी युद्ध में जख्मी हो चुके महाराणा प्रताप ने आखिरी दांव आजमाया और उन्होंने राजा रामशाह तोमर के पुत्र प्रताप तोमर से कहा कि "रामप्रसाद पर सवार होकर आगे आओ"
प्रताप सिंह तोमर |
> रामप्रसाद ने आते ही न सिर्फ मुगल सैनिकों को बल्कि 14 मुगल हाथियों को भी मार गिराया
> अबुल फजल लिखता है "राणा के सबसे खास रामप्रसाद हाथी ने आते ही कोहराम मचा दिया | शाही फौज में खलबली मच गई | जब हालत बिगड़ती नज़र आई, तो कमाल खां ने गजराज हाथी को और पंजू ने रणमदार हाथी को आगे लाकर रामप्रसाद से भिड़न्त करवाई | शाही हाथी रणमदार के पैर उखड़ने लगे"
> "गजराज" व "रणमदार" नामक दो मुगल हाथियों की भिड़न्त रामप्रसाद से हुई, कि तभी एक तीर रामप्रसाद के महावत को लगा, जिससे महावत उसी समय वीरगति को प्राप्त हुआ |
> मुगल महावतों ने रामप्रसाद को चारों तरफ से घेर लिया | प्रताप तोमर इस प्रसिद्ध हाथी पर बैठकर वीरगति को प्राप्त हुए | बड़ी मुश्किल से एक मुगल महावत रामप्रसाद पर चढ़ गया और चारों तरफ से घिरे इस स्वामिभक्त हाथी को बेड़ियों में जकड़ लिया गया |
* बंदायूनी लिखता है "सैयदों से लड़ने वाला हाकीम खां सूर भागकर राणा के पास पहुंचा | दोनों फौजी टुकड़ियां मिल गईं और सब पहाड़ियों में भाग निकले | दरअसल जिस जज्बे से रामप्रसाद को मुगल महावत ने काबू में किया, ये देखकर राणा के हौंसले पस्त हो गए थे और वो भाग निकला | दोपहर हो चुकी थी और गर्मी इतनी तेज थी कि हमारी खोपड़ी का खून उबलने लगा था | हमें इस बात का भी इल्म था कि राणा पहाड़ियों में छल-कपट से काम लेता था और हो सकता है वह पहाड़ियों में घात लगाए बैठा हो, इसलिए हमने उसका पीछा ना करना ही मुनासिब समझा"
* अगले भाग में हाकिम खां सूर, झाला मान व तोमर वंश के बलिदान के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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