महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 89
21 जून, 1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"
"मानसिंह कछवाहा के नेतृत्व में युद्ध में भाग लेने वाले सिपहसालार"
> अली आसफ खां :- इसे मीर बख्शी बनाया गया
> अब्दुल कादिर बंदायूनी :- ये मुगल लेखक था
> मेहतर खां :- ये चन्दावल का प्रमुख था | मानसिंह ने मेहतर खां के नेतृत्व में पीछे एक और फौज तैयार रखी थी, ताकि जरुरत पड़ने पर काम आ सके |
> काजी खां
> महाबली खां
> मुजाहिद बेग
> कमाल खां
> पंजु
> शैख मंसूर :- ये शैख इब्राहिम चिश्ती का दामाद था | इसकी कमान में सीकरी के शैखजादे थे |
> बहलोल खां :- ये उजबेक था
> खंजारी तुर्क
> सैयद राजू
> सैयद अहमद खां
> सैयद हाशिम खां :- ये हरावल का नेतृत्व कर्ता था
> हुसैन खां :- ये हाथियों का दारोगा था
> राजा लूणकरण :- ये कछवाहों की शेखावत शाखा के मूलपुरुष शैखा का प्रपौत्र था | अकबर ने लूणकरण को 'रायरायां' का खिताब भी दिया था |
> गाजी खां बदख्शी
> ख्वाजा मुहम्मद रफी बदख्शी
> अली मुराद उजबेक
> ख्वाजा गयासुद्दीन अली
> शाह गाजी खां तबरेजी
> शियाबुद्दीन गुरोह
> पायन्दा कज्ज़ाक
> इब्राहिम चिश्ती
> जगन्नाथ कछवाहा :- ये मानसिंह का काका था
> माधोसिंह कछवाहा :- ये मानसिंह का भाई था
> राव खंगार कछवाहा :- ये आमेर के राजा भारमल के भाई जगमाल का बेटा व मानसिंह का काका था | ये कछवाहों की खंगारोत शाखा का मूलपुरुष था |
> नाथा कछवाहा :- ये आमेर के राजा भारमल के भाई गोपाल सिंह का बेटा था | ये कछवाहों की नाथावत शाखा का मूलपुरुष था | इस पर नाथावंशप्रकाश नाम का ग्रन्थ लिखा जा चुका है | नाथा कछवाहा चित्तौड़ विध्वंस (1568 ई.) के समय अकबर के साथ था |
> मनोहरदास कछवाहा :- ये नाथा कछवाहा का बेटा था
"फौजी जमावट"
* मुगल फौज की हरावल -
सबसे आगे सैयद हाशिम अपने 80 सबसे मजबूत सिपाहियों के साथ था
उसके साथ हरावल में राजा जगन्नाथ कछवाहा, मोहम्मद रफी बदख्शी, ख्वाजा गयासुद्दीन अली, आसफ खां आदि थे | मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी भी हरावल के खास सैन्य में था |
* मेवाड़ी फौज की हरावल -
सबसे आगे हाकिम खां सूर ने हरावल का नेतृत्व किया
इनके साथ हरावल में सलूम्बर के रावत कृष्णदास चुण्डावत, देवगढ़ के रावत सांगा चुण्डावत, सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया, बदनोर के रामदास राठौड़ भी थे
* मुगल फौज का दायां पक्ष व मेवाड़ी फौज का बायां पक्ष :- मुगल फौज के एक तरफ सैयद अहमद व बारहा के भाई थे, जिनके सामने मेवाड़ी सेना में बायीं तरफ तीनों मानसिंह जी (बड़ी सादड़ी के झाला मान अपने 150 सैनिकों के साथ, देलवाड़ा के मानसिंह झाला व महाराणा के मामा जालौर के मानसिंह सोनगरा) थे
* मुगल फौज का बायां पक्ष व मेवाड़ी फौज का दायां पक्ष :- मुगल फौज के दूसरी तरफ गाजी खां बदख्शी, शैखजादा, काजी खां, राजा लूणकरण थे
(इन सभी की अपनी-अपनी फौजी टुकड़ी थी, जिनमें हल्दीघाटी मुहाने पर काजी खां की फौजी टुकड़ी तैनात थी)
इनके सामने मेवाड़ी सेना में दायीं तरफ राजा रामशाह तोमर अपने पुत्रों व 300 तोमर साथियों के साथ थे |
* मुगल फौज का मध्य भाग :- मुगल फौज के बीचों बीच मानसिंह कछवाहों की भारी जमात के साथ था | मानसिंह मर्दाना नाम के हाथी पर सवार था | मानसिंह के ठीक आगे बहलोल खां नामी उजबेक तैनात था |
* मेवाड़ी फौज का मध्य भाग :- मेवाड़ी सेना के बीचों बीच महाराणा प्रताप थे | महाराणा प्रताप के साथ भामाशाह कावडिया, ताराचन्द कावडिया, प्रताप सिंह तोमर आदि थे | प्रताप सिंह तोमर शुरुआत में घोड़े पर सवार थे व इस युद्ध में हाथियों के दारोगा थे, जो कि युद्ध के आखिरी वक्त में प्रसिद्ध रामप्रसाद नामी हाथी पर सवार हुए थे |
* चन्दावल :-
मुगल फौज में सबसे पीछे चन्दावल में माधोसिंह कछवाहा, मेहतर खां वगैरह थे
मेवाड़ी सेना में सबसे पीछे राणा पूंजा भील के नेतृत्व में पुरोहित गोपीनाथ, महता रत्नचन्द, पुरोहित जगन्नाथ, महासहानी जगन्नाथ, जैसा बारहठ आदि थे
* मुगल फौज में सबसे मजबूत टुकड़ी सैयद अहमद व बारहा के भाईयों की थी और मेवाड़ी फौज में सबसे मजबूत टुकड़ी तोमर वंश की थी, जो आखिर तक टिकी रही
> अगले भाग में हाकिम खां सूर के नेतृत्व में हरावल की लड़ाई, ठाकुर भीमसिंह डोडिया व रामदास राठौड़ के बलिदान के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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