Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 2

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 2


* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 66

महाराणा प्रताप से सम्बन्धित दिलचस्प जानकारियाँ

* महाराणा प्रताप के लिखे पत्रों पर भाले का चिन्ह अंकित किया जाता, जिसे हस्ताक्षर रुप में स्वीकार किया जाता था |

* महाराणा प्रताप को राणा कीका, पाथळ, पत्ता, हल्दीघाटी का शेर, नीला घोड़ा रो असवार, मेवाड़ केसरी आदि नामों से भी जाना जाता है, लेकिन महाराणा प्रताप को उस जमाने में राणा प्रताप से भी अधिक राणा कीका नाम से जाना जाता था | फारसी तवारिखों में अबुल फजल, अब्दुल कादिर बंदायूनी ने भी इन्हें राणा कीका ही कहा है | ये नाम भीलों ने महाराणा के बचपन में रखा था | कीका का अर्थ होता है "बेटा" |

* उसी जमाने के एक चारण कवि के अनुसार महाराणा प्रताप 2 तलवारें रखते थे | एक अपने लिए व दूसरी निहत्थे शत्रु के लिए |

* युद्धभूमि में चेतक को मुगल हाथियों से भी मुकाबला करना पड़ता था, इसलिए हाथियों को भ्रमित करने लिए महाराणा प्रताप चेतक के मुख पर हाथी की नकली सूंड लगा दिया करते थे |

* महाराणा प्रताप और अकबर ने पूरे जीवन में कभी एक-दूसरे को नहीं देखा | कुछ किस्सों में बताया जाता है कि अकबर ने महाराणा प्रताप को देखा था या उनसे मिला था, पर ये सही नहीं है |

* महाराणा प्रताप को बड़े पैमाने पर जन-सहयोग मिला | मेवाड़ की प्रजा उनका बहुत आदर करती थी |

* कविराज श्यामलदास के अनुसार महाराणा प्रताप अनुशासन के पक्के थे |

* महाराणा प्रताप बाल विवाह व सती प्रथा के खिलाफ थे | महाराणा प्रताप की किसी भी रानी के सती होने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है |

* संघर्ष के दिनों में महाराणा प्रताप कई-कई दिनों तक अपने ज़िरह-बख्तर को पहने रखते थे | ये ज़िरह-बख्तर आज उदयपुर सिटी पैलेस में रखा हुआ है |

* महाराणा प्रताप जैन आचार्यों का भी बहुत सम्मान करते थे | जब तपागच्छ के पट्टधर का उदयपुर आना हुआ, तो महाराणा प्रताप उनकी आगवानी के लिए तेलियों की सराय (वर्तमान में बी.एन. कॉलेज) तक पधारे थे |

* अकबर के दरबारी कवि दुरसा आढ़ा की नजर में घोर अंधकार से परिपूर्ण अकबर के शासन में जब सब राजा ऊँघने लग गए किन्तु जगत का दाता राणा प्रताप पहरे पर जाग रहा था | राणा प्रताप के प्रण, पराक्रम व पुरुषार्थ पर मुग्ध कवि ने लिखा -

अकबर घोर अंधार, उंघाणा हींदू अवर |
जागै जगदातार, पोहरै राणा प्रतापसी ||

* महाराणा प्रताप के बारे में वीरविनोद के लेखक कविराज श्यामलदास लिखते हैं "इन महाराणा का जीवन ज़िरहबख्तर पहिने हुए व तलवार हाथ में लिए बड़े ही बहादुराना बर्ताव के साथ गुजरा"

* चावण्ड में मिले साक्ष्यों से पता चलता है कि महाराणा प्रताप वास्तुशास्त्र में भी विश्वास रखते थे |

* महाराणा प्रताप की धर्मनिरपेक्षता का पता इस बात से चलता है कि उनकी फौज में हकीम खान सूरी भी थे और महाराणा के समय चावण्ड चित्रशैली प्रसिद्ध हुई, जिसमें प्रमुख चित्रकार नसीरुद्दीन थे, जिनकी "रागमाला" बड़ी प्रसिद्ध है |

* आत्म प्रशंसा में लिखने के नाम पर महाराणा प्रताप ने अपने पास कुछ नहीं माना अन्यथा उनके दरबार में भी काेई अबुल फज़ल और फैजी होता | याद नहीं कि महाराणा ने अपनी प्रशंसा में काेई
ग्रंथ लिखवाया हो | उनके जीवनकाल में प्रशंसा की कोई पुष्पिका तक नहीं मिलती, हां चक्रपाणि मिश्र ने जरूर एकाध श्लोक महाराणा प्रताप की प्रशंसा में लिखा |
महाराणा प्रताप के समय विद्वान चक्रपाणि मिश्र ने कुछ ग्रन्थ लिखे, जिनमें से कुछ इस तरह हैं -
१) विश्व वल्लभ
२) राज्याभिषेक पद्धति
३) मुहुर्तमाला
४) व्यवहारादर्श

* महाराणा प्रताप अकबर को ना तो बादशाह कहते थे और ना उसका नाम लेते | वे अकबर को सदैव "तुर्क" कहा करते थे |

* महाराणा प्रताप का कद लम्बा, आँखें बड़ी, चेहरा भरा हुआ और प्रभावशाली, मूंछें बड़ी, छाती चौड़ी, बाहु विशाल और रंग गेहुँआ था | पुराने रिवाज के अनुसार दाढ़ी नहीं रखते थे | आज भी इन महाराणा की तस्वीर देखकर हर एक आदमी पर रौब छा जाता है |

> अगले भाग में महाराणा प्रताप के जन्म व उनके परिवार के कुछ सदस्यों के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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