Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 18

महाराणा प्रताप के इतिहास


* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 82

> कर्नल जेम्स टॉड ने एक दिल दहला देने वाली घटना का उल्लेख किया है | इस सत्य घटना को कईं इतिहासकारों ने भी लिखा है |

टॉड लिखता है "प्रताप थोड़े से घुड़सवारों को साथ लेकर अपने आदेशों का पालन करवाने निकल जाता था | मेवाड़ के मैदानी इलाकों में रेगिस्तान जैसी चुप्पी छा गई थी | लहलहाती फसलों की जगह अब घास-फूस ने ले ली थी | मुख्य मार्ग काँटों भरे बबूल से बन्द हो गए थे | प्रताप के प्रजाजनों के खाली पड़े निवास स्थानों में अब जंगली जानवर रहने लग गए थे | इस निर्जनता के बीच एक चरवाहा बनास नदी के किनारे ऊंठाळा के घास के मैदान में बेफिक्र होकर बकरियाँ चरा रहा था | प्रताप ने उससे कुछ प्रश्न किए | आदेश का उल्लंघन करने पर उस चरवाहे को मारकर उसका शव पेड़ से लटका दिया गया, ताकि कोई भी प्रताप के आदेशों को हल्के में ना ले | इस कठोर देशभक्ति से प्रताप ने मेवाड़ को शत्रु के लिए किसी उपयोग का नहीं छोड़ा | एक भयानक, किन्तु अनिवार्य बलिदान"

"मेवाड़ पर हमले से पूर्व अकबर द्वारा की गई तैयारियां"

1575 ई.

* इस वर्ष अकबर ने चित्तौड़ को अजमेर सूबे का हिस्सा बनाया | अकबर ने महाराणा के खिलाफ अपनी जंग को धर्म से जोड़ते हुए मेवाड़ के रायला, बदनोर, शाहपुरा, अरनेता, कटड़ी, कान्या आदि इलाकों को सूफी सन्त मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह (अजमेर) के हिस्से में दे दिये |

* इस वक्त मेवाड़ के 26 दुर्ग अकबर के अधीन थे | मोहन व रामपुरा के दुर्गों का नाम बदलकर इस्लामपुर कर दिया गया | इन 26 किलों में मुस्लिम आबादी बढाई गई और ये क्षेत्र मुगलों को व मेवाड़ के अन्य शत्रुओं (जगमाल वगैरह) को सौंपे गए |

मकसद ये था कि महाराणा प्रताप के लिए मेवाड़ के अन्दर ही शत्रु विकसित किए जायें

* इसी वर्ष अकबर ने महाराणा प्रताप पर बादशाही मातहती कुबूल करने का दबाव बढ़ाने के लिए फिर से जजिया कर लागू कर दिया |

(अकबर ने जजिया कर लगाने के लिए ही मेवाड़ के इलाके अजमेर के हिस्से में दिये थे......हालांकि कुछ समय बाद उसने जजिया कर हटा दिया)

* इसी वर्ष अकबर ने महाराणा प्रताप व राव चन्द्रसेन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सैयद हाशिम व जलाल खां कोरची को भेजा

मारवाड़ के राव चन्द्रसेन, जिन्हें मारवाड़ का राणा प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, भूला बिसरा राजा भी कहा जाता है, उन्होंने जलाल खां कोरची की हत्या कर दी

17 फरवरी, 1576 ई.

* मुगल बादशाह अकबर एक जर्रार फौज समेत अजमेर पहुंचा

वह ख्वाजा की दरगाह पर जियारत करने के बहाने आया था, पर मकसद मेवाड़ विजय था

अकबर खुद मेवाड़ नहीं गया, लेकिन उसने अजमेर में महाराणा प्रताप के विरुद्ध युद्ध की तैयारियां, सेनापति का चुनाव वगैरह करना शुरु कर दिया

जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर

मार्च, 1576 ई.

* अकबर नहीं चाहता था कि महाराणा से युद्ध के वक्त मेवाड़ के पड़ोसी राज्य महाराणा का साथ दे | इसलिए अकबर ने पहले सिवाना दुर्ग पर हमला किया |

* अकबर ने एक फौज सिवाना दुर्ग पर राव चन्द्रसेन राठौड़ के खिलाफ भेजी | राव चन्द्रसेन ने अपने किसी राठौड़ सर्दार को सिवाना दुर्ग सौंप दिया | सिवाना दुर्ग के आसपास महाराणा प्रताप ने अपने कुछ मेवाड़ी सैनिक भेजे, जिनका सामना मुगलों से हुआ | संख्या में ज्यादा होने की वजह से मुगलों ने सिवाना दुर्ग पर कब्जा कर लिया |

> अगले भाग से शुरु होगी "हल्दीघाटी युद्ध" की गौरवगाथा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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